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May 27, 2023
मकर संक्रान्ति पर करें ये उपाय और पाएं भगवान सूर्य से धन, रूप, तेज और आरोग्य का वरदान
Namo TV Bharat January 14, 2021
मकर संक्रान्ति पर करें ये उपाय और पाएं भगवान सूर्य से धन, रूप, तेज और आरोग्य का वरदान,,सूर्य की संक्रान्ति है महाफलदायी
सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करे, उस समय का नाम संक्रान्ति है। सूर्य बारह स्वरूप धारण करके बारह महीनों में बारह राशियों में संक्रमण करते रहते हैं; उनके संक्रमण से ही संक्रान्ति होती है। इस तरह वर्ष में बारह संक्रान्ति होती हैं किन्तु सबसे ज्यादा महत्व मकर-संक्रान्ति का है।
मकर-संक्रान्ति है देवताओं का प्रभातकाल!!!!!!
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर-संक्रान्ति’ कहलाता है। इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण को ‘देवताओं का दिन’ व दक्षिणायन को ‘देवताओं की रात’ कहा गया है। इस तरह मकर-संक्रान्ति देवताओं का प्रभातकाल है। इसको अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर-संक्रान्ति से दिन बढ़ने लगता है और रात छोटी होने लगती है। इससे प्रकाश अधिक व अंधकार कम होने लगता है फलस्वरूप प्राणियों की चेतनता और कार्यक्षमता में वृद्धि होने लगती है। मकर-संक्रान्ति प्राय: १४ जनवरी को मनाई जाती है।
मकर-संक्रान्ति पर गंगास्नान का महत्त्व
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।। (राचमा १।४४।३)
ऐसा माना जाता है कि मकर-संक्रान्ति के दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं; इसलिए मकर-संक्रान्ति के दिन गंगास्नान या नदियों में स्नान को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है।
मकर-संक्रान्ति के दिन दान का फल अक्षय होता है!!!!!
मकर संक्रान्ति में किए गए स्नान, तर्पण, दान और पूजन का फल अक्षय होता है। इससे मनुष्य सभी प्रकार के भोगों के साथ मोक्ष को प्राप्त होता है।
उत्तरप्रदेश में इस पर्व को ‘खिचड़ी’ कहते हैं। इस दिन खिचड़ी खाना व खिचड़ी, तिल, घी, कम्बल, ऊनी वस्त्र के दान देने का विशेष महत्त्व है। शीतकाल में रुईदार वस्त्र (ऊनी वस्त्र) दान करने से शरीर में कभी दु:ख नहीं होता है। मकर-संक्रान्ति को किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देने की परम्परा है।
दक्षिण भारत में यह ‘पोंगल, और असम में ‘बिहू’ के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर-संक्रान्तिपर्व ‘लोहिड़ी’ के नाम से मनाया जाता है।
एक लोक कथा है कि मकर-संक्रान्ति के दिन कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामकी राक्षसी को गोकुल भेजा था पर श्रीकृष्ण ने उसे खेल-खेल में ही मार डाला। इसी संदर्भ में लोहिड़ी का पर्व मनाया जाता है। साथ ही नयी फसल का चावल, दाल, तिल आदि से पूजा करके कृषिदेवता के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।
संक्रान्तिकाल में ऐसे करें भगवान सूर्य का पूजन!!!!!!
संक्रान्ति के दिन प्रात:स्नान करके स्नान-दान-जप-होम आदि से पहले इस प्रकार संकल्प कर लें—
‘मम ज्ञाताज्ञात समस्त पातकोपपातक दुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त पुण्यफल प्राप्तये श्रीसूर्यनारायण प्रीतये स्नानदानजपहोमादि कर्माहं करिष्ये।’
अर्थात्—मैं अपने जाने-अनजाने सभी पापों के नाश के लिए, श्रुति-स्मृति और पुराणों का पुण्यफल प्राप्त करने और भगवान सूर्य की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए स्नान-दान-जप-होम आदि कार्य करुंगा।
इसके बाद सूर्यनारायण का पूजन कर व्रत करने से सब प्रकार के पापों का नाश, आधि-व्याधि का नाश व सब प्रकार की हीनता और संकोच का अंत हो जाता है, साथ ही सुख-संपत्ति, संतान व सहानुभूति की प्राप्ति होती है।
संक्रान्तिकाल में ‘ॐ सूर्याय नम:’ या ‘ॐ नमो भगवते सूर्याय’का जप और आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करना चाहिए। घी, बूरा व मेवा मिले तिलों से हवन कर अन्न-वस्त्र का दान देना चाहिए। संक्रान्ति को रात्रि में स्नान व दान नहीं करना चाहिए।
संक्रान्ति के दिन एक कलश में जल भरकर सर्वोषधि डाल दें, साथ में फल व दक्षिणा रखकर रोली चावल से कलश का पूजन करें। सूर्यभगवान को अर्घ्य अर्पित कर एक समय भोजन करें। कलश ब्राह्मण को दे दें। एक वर्ष तक इस तरह हर संक्रान्ति को व्रत व पूजन करने से मनुष्य को कभी धन की कमी नहीं रहती है।
संक्रान्ति के दिन ब्राह्मण-दम्पत्ति को बुलाकर भोजन कराएं व श्रृंगार सामग्री, पान, पुष्पमाला, फल व दक्षिणा देने से मनुष्य को मनचाहे भोगों की प्राप्ति होती है।
रूप-सौन्दर्य की इच्छा रखने वाले मनुष्य को संक्रान्ति के दिन तेलमालिश के बाद स्नान करना चाहिए। फिर एक पात्र में घी व सोना रखकर उसमें अपनी छाया देखकर ब्राह्मण को दान दें व व्रत करें तो रूपसौन्दर्य की वृद्धि होती है।
संक्रान्ति के समय एक कलश में चावल भरकर उस पर घी का दीपक रखें। उसके समीप में मोदक रखकर गंध-पुष्प से पूजन कर यह बोलते हुए जल छोड़ दें कि मैं अपने पापों के नाश के लिए व तेज की प्राप्ति के लिए इस पूर्णपात्र का ब्राह्मण को दान करता हूँ। ऐसा करने से मनुष्य के तेज में वृद्धि होती है।
संक्रान्ति के समय एक कांसे की थाली में घी, दूध व सोना रखकर रोली चावल से पूजन कर ब्राह्मण को दान दें तो तेज, आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है।
भगवान सूर्य का संक्रान्तिकाल है परम फलदायी!!!!!!!
—धन, मिथुन, मीन और कन्या राशि की संक्रान्ति को षडरीतिकहते हैं। इस संक्रान्ति में किए गए पुण्यकर्मों का फल हजारगुना होता है।
—वृष, वृश्चिक, कुम्भ और सिंह राशि पर जो सूर्य की संक्रान्ति होती है, उसका नाम विष्णुपदी है। इस संक्रान्ति में किए गए पुण्यकर्मों का फल लाखगुना होता है।
—तुला और मेष राशि पर जो सूर्य की संक्रान्ति होती है, उसका नाम विषुवती है। इसमें दिए गए दान का फल अनन्तगुना होता है।
—उत्तरायण और दक्षिणायन आरम्भ होने के दिन किए गए सत्कर्मों का कोटिगुना अधिक फल प्राप्त होता है।
वर्षभर की बारह संक्रान्ति में दिए जाने वाले दान!!!!!!
१. मेष संक्रान्ति में मेढ़ा (नर भेड़) का दान
२. वृष संक्रान्ति में गौ का दान
३. मिथुन संक्रान्ति में अन्न-वस्त्र और दूध-दही का दान
४. कर्क संक्रान्ति में गाय
५. सिंह संक्रान्ति में सोना, छाता आदि
६. कन्या संक्रान्ति में वस्त्र और गाय
७. तुला संक्रान्ति में जौ, गेहूं, चना आदि धान्य
८. वृश्चिक संक्रान्ति में मकान, झौंपड़ी आदि
९. धनु संक्रान्ति में वस्त्र और सवारी
१०. मकर संक्रान्ति में लकड़ी, घी, ऊनी वस्त्र
११. कुम्भ में गायों के लिए घास और जल
१२. मीन में सुगन्धित तेल और पुष्प का दान करना चाहिए।
इस प्रकार संक्रान्ति के अवसर पर जो कुछ दान किया जाता है, भगवान सूर्यनारायण उसे जन्म-जन्मान्तर तक प्रदान कर सब प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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