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पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद भी गड़शिमुला काली मंदिर आज भी बिकाश से दूर।
Namo TV Bharat October 25, 2022
पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद भी गड़शिमुला काली मंदिर आज भी बिकाश से दूर।
https://youtu.be/fOXYXBjmdv8
रिपोर्ट-चंचल गिरी
जामताड़ा, झारखंड। राज्य में अनेकों प्राचीन मंदिरों में से एक जामताड़ा जिला के कुंडहित प्रखंड के अम्बा पंचायत अंतर्गत गड़शिमुला काली मंदिर भी है।जी हां….इस मंदिर में लगभग 1100 वर्षो से होती आ रही है काली पूजा।आपको बता दें कि यहाँ पाल काल के पहले से पूजा होते आ रहा है।सबसे प्राचीन रूप से अस्टवक्र मुनि से इसका नाम जोड़ा जाता है।सेन राजाओं के समय इस क्षेत्र की विशेष महत्व हो गई ।कहा जाता है कि उस समय इसकी भव्यता का गान चंडीदास तक ने भी की थी।यहां काली की पूजा विशेष तरीको से की जाती है जिसमे तंत्र और वैदिक पद्धतियों का समावेश है।
गड़शिमुला की स्थापना किसने की यह तो ज्ञात नही हो पाता है ,पर इस बात की जानकारी मिलती है कि 1100से 1200 ई.के बीच हुई लड़ाई में सेन वंश के सारे लोग मारे गए थे।फिर दंडी स्वामी जी के निर्देश पर देवघर के किसी सिद्ध संत ने रोहिणीगढ़ से योद्धाओं को भेजा था।वह तिथि काली पूजा की थी।इस काली मंदिर में मधुसूदन सरस्वती के द्वारा पूजा किये जाने का जिक्र मिलता है। कहते है की स्वतंत्रता संग्राम के कई महानायक इस राज्य में आकर तपस्या किए थे।इस राज्य का प्रसार वर्तमान गोड्डा जिला तक था क्यूंकि वहां भी गड़शिमुला मौजूद है। हेतमपुर राज्य की स्थापना के बाद इस मंदिर का पदुर्भाव बड़ गया।उन्होंने इसके लिए कई पट्टा दिए।इस मंदिर के लिए पुजारियों की व्यवस्था की।यहाँ तांतेया टोपे ने भी सिद्धि प्राप्त कर बक्रेश्वर मंदिर में चले गए,जहाँ वो आज भी खेंकि बाबा के नाम से प्रसिद्ध है।यहाँ गुप्त सुरंग की भी जिक्र मिलता है पर वो कहाँ है वो एक रहस्य बनकर रह गया है।
वर्तमान समय में इस मंदिर में सिर्फ झारखंड ही नही पश्चिम बंगाल, बिहार व अन्य राज्यो से भक्त पहुंचते है माँ काली की पूजा करने।खास कर मंगलवार और शनिवार के दिन खासा भीड़ होती है।यहाँ पशु बलिदान की प्रथा है।इस मंदिर के पुजारियों ने बताया कि जो पशु बलिदान के लिए खूंटा है,उसे उस स्थान से हटाया नही जा सकता क्योंकि वो खूंटा एक चट्टान को काट कर खूंटा का रूप दिया गया है और मिट्टी के काफी अंदर तक खोदने में ये पाया गया था कि ये खूंटा एक विशाल पत्थर के शीर्षभाग को काट कर खूंटा का आकार दिया गया है।
वही मंदिर के पुजारी स्वाधीन चक्रवर्ती ने बताया कि इस गड़शिमुला काली मंदिर हमारे पूर्वज लगभग 500 वर्षों से पूजा करते आ रहे हैं।और आज हम लोग भी इससे जुड़े हुए है।उन्होंने आगे कहा कि जब सत्यानंद झा विधायक व कृषि मंत्री के पद पर थे तो उनके कार्यकाल में 2012 में इस मंदिर को पर्यटन स्थल घोषित किया एवं सौचालय, बिकाश भवन आदि बिकाश कार्य किये थे। हम प्रदेश सरकार से मांग करते है इस मंदिर को जल्द से जल्द सौंदर्यीकरण किया जाए।वही इस वर्ष हजारों श्रद्धालू काली पूजा करने व मत्था टेकने पहुंचे।जहां मच्छब ओर पूड़ी का आयोजन किया गया।
साथ ही सिंगेल रास्ता होने की वजह से के वजह से गड़शिमुला गांव से मंदिर तक बाहनों से जाम हो गया था।जिसे कुंडहित प्रशासन अपनी तत्परता दिखाते हुए जाम को हटाया ओर श्रद्धालुओं को किसी तरह कोई परेशानी नही हुई।कुंडहित प्रसासन का कार्य बहुत ही सराहनीय दिखा।
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