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भागवत सुनना ही पर्याप्त नहीं है उस पर मनन करना भी जरूरी : मारूतिनंदन शास्त्री
Namo TV Bharat October 28, 2022
भागवत सुनना ही पर्याप्त नहीं है उस पर मनन करना भी जरूरी : मारूतिनंदन शास्त्री
–श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन गौकर्ण और धुंधकारी की कथा का कराया रसापान
विनोद राजपूत
राजस्थान,भादरा। गुरू की महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन हमेशा इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें। यह विचार कुलदे दादी अतिथि भवन में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन मारूतिनंदन शास्त्री जी महाराज ने व्यक्त किए। इस दौरान उन्होंने गौकर्ण और धुंधकारी, राजा परीक्षित व सुखदेव मुनि की कथा का रसपान कराया।
उन्होंने श्राद्ध का महत्व बताते हुए कहा कि पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध करते हैं। गया में श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। बताया जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। गया में फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किया था। इसके बाद कौरवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था।
मारूतिनंदज जी महाराज ने सच्चे संत की महत्ता बताते हुए कहा कि जो सबके हित का विचार करता है वो सच्चा संत है। संतो के चरणो में श्रद्धा का भाव होना ही चाहिए। उन्होंने भक्त और भगवान के बीच सच्ची श्रद्धा के भाव को इंगित करते हुए कहा कि भगवान की कथा संत सुनते हैं, भक्त सुनते हैं, जब भक्त की कथा होती है तो स्वयं भगवान सुनते हैं। भगवान की कथा सुनने से सब मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
मारूतिनंदन शास्त्री ने भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि भागवत सुनना ही पर्याप्त नहीं है उस पर मनन करना भी जरूरी है। भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है। इसलिए सद्गुरु की पहचान कर उनका अनुकरण एवं निरंतर हरि स्मरण, भागवत कथा श्रवण करने की जरूरत है। श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। महाराज ने कहा कि दु:ख का नब्बे प्रतिशत कारण गलत जीवन शैली है। उन्होंने जीवन शैली में आध्यात्मिकता का महत्व बताया।
इसी दौरान महाराज ने‘संतन के संग लाग रे तेरी अच्छी बनेगी…’ ‘सुख भी मुझे प्यारे हैं दु:ख भी मुझे प्यारे हैं छोड़ू मैं किसे भगवन दोनों ही तुम्हारे हैं…, ‘थाली भर कर ल्याई रै खीचड़ो ऊपर घी की बाटकी…’ व प्रभु तेरी शरण में आया हूं… भजन सुनाए जिस पर उपस्थित श्रद्धालु झूम उठे। इससे पहले महिपाल परिवार की ओर से देवेंद्र कुमार महिपाल व उनकी धर्मपत्नी सुधादेवी ने व्यासपीठ पर भागवत जी का पूजन कर मारूतिनंदन जी शास्त्री का तिलक लगाकर, फूल माला पहनाकर स्वागत किया। कथा के आखिरी पल में निधिश महिपाल व भविन महिपाल बाल गोपाल के रूप में पहुंचे। इन बाल गोपालों का सुरेश कुमार महिपाल ने तिलक लगाकर अभिनंदन किया। अंत में भागवत भगवान की आरती ‘मन में बसा के तेरी मूर्ति ऊतारूं मैं तेरी आरती…’के पश्चात दूसरे दिन की कथा का समापन हुआ।
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